“सुकून की तलाश”
कभी-कभी ख़्वाबों की महफ़िल सुलग-सी लगती है,
आँखें खोलो तो लगता है अँधेरों से भरी ज़िंदगी है।
थोड़ी-सी मुस्कुराहट से ये अँधेरा कम-सा लगता है,
बीत जाए जो लम्हा, वही हसीन पल-सा लगता है।
कुछ अनकही बातें इस दिल में ही रहती हैं,
ख़ामोशी की लहरें दबी-दबी-सी रहती हैं।
सोचा तो लगा कि सिर्फ़ मुझे ही रौशनी की तलाश है,
आँख खुली तो देखा—सारे जहाँ को सुकून की आस है।
महक मल्होत्रा
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