Wednesday, 3 December 2025

Beautiful poem shared by Ms. Mehak Malhotra (Office Superintendent)

 “सुकून की तलाश” 

कभी-कभी ख़्वाबों की महफ़िल सुलग-सी लगती है,

आँखें खोलो तो लगता है अँधेरों से भरी ज़िंदगी है।

थोड़ी-सी मुस्कुराहट से ये अँधेरा कम-सा लगता है,

बीत जाए जो लम्हा, वही हसीन पल-सा लगता है।

कुछ अनकही बातें इस दिल में ही रहती हैं,

ख़ामोशी की लहरें दबी-दबी-सी रहती हैं।

सोचा तो लगा कि सिर्फ़ मुझे ही रौशनी की तलाश है,

आँख खुली तो देखा—सारे जहाँ को सुकून की आस है।



 महक मल्होत्रा

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